मलयाली फ़िल्म पोनमैन जीतेगी आपका दिल - Ponman Review



एमपी नाउ डेस्क



Ponman Review In Hindi: मलयालम सिनेमा की धाक देश सहित अब दुनियाभर में देखी जा रही है...ओटीटी के आने के बाद अब एक ऐसा विकल्प फिल्म निर्माताओं को मिल चुका है कि वह बिना सिनेमाघरों के भी दर्शकों के सामने अपनी कृति प्रस्तुत कर सकता है। इसका मतलब अब विकल्प जितने दर्शकों के पास मौजूद है उतने ही निर्माताओं के पास। 

इसका सबसे अधिक फ़ायदा अच्छी कहानियों और अच्छे सिनेमा को हुआ है। जो दर्शक अच्छी कहानियों की तलाश में बैठे होते थे...और रचनात्मकता और सर्जनात्मक की तलाश में घटिया सा घटिया फिल्मों में अपना समय बीता देते है...उनके लिए मलयालम भाषा में बनी हिंदी डब फ़िल्म ‘पोनमैन’ एक अच्छा विकल्प है।
जी हां! जिओ हॉटस्टार में स्ट्रीम पोनमैन एक बिल्कुल आम सी कहानी में निर्देशक की जीत को सेलिब्रेट करती है। 'जोतिष शंकर’ नाम के मल्लू निर्देशक ने पोनमैन का निर्देशन किया है, जिसमें बेसिल जोसेफ साजिन गोपुलिजो मोल जोस जैसे मलयाली कलाकारों ने अपने अभिनय से कहानी में जीवंतता उत्पन्न कर दी है।

‘पोनमैन’ समुद्र के आस पास बसे गांवों में रहने वाले आम लोगों की कहानी है...जिसमें निर्देशक ने वह उन के द्वारा आम जीवन में होने वाली कठिनाइयों जैसे विवाह के समय में दहेज जैसी प्रथाओं, समुद्र के किनारे बसे लोगों का मछली और अन्य समुद्री व्यवसाय और आम जन जीवन में छोटी बड़ी परेशानियों को दिखाया है। 

फिल्म में एक भाई है, जो एक पार्टी का समर्थन करता है दिलों जान से लेकिन एक घटना के बाद उसे पार्टी से निष्कासित कर दिया जाता है। इस बीच उसकी बहन की शादी तय हो जाती है जिसमें काफी अधिक मात्रा में सोना दहेज में देना है चूंकि वह उस समाज और जगह की संस्कृति का एक हिस्सा है...ऐसे में कई चुनौतियों के बीच दोस्तो के मदद से वह किसी प्रकार सोने का जुगाड करने में कामयाब हो जाता है लेकिन यही से शुरू होता है असली संघर्ष फिल्म में वह भाई नहीं है नायक फिल्म में सोना देने वाला है नायक।
एक गरीब घर का लड़का जीवन की चुनौतियों से लड़ रहा है...एक बेहद ही ख़तरनाक और जोख़िमभरा काम कर रहा है वह उन परिवारों को सोना उपलब्ध करवाता है जिनके पास शादी के लिए देने वाला सोना नहीं होता है वह सोना देता है...शादी में आने वाले दहेज से उन सोने की कीमत वसूलता है मतलब लाखों रुपए का सोना बिल्कुल उधारी में।

वह उस स्थानीय राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता की मदद करता है जिसका उसकी पार्टी ने साथ छोड़ दिया है लेकिन जब उस लड़की की शादी में उतना दहेज नहीं आता जितनी कीमत का सोना है फिर शुरू होती है सोने की लड़ाई। यह बिल्कुल आम व्यक्ति की कहानी है फ़िल्म का नायक डरता है लेकिन अपने डर से जीतते हुए वह अपने हक के लिए लड़ जाता है...उसके अंदर स्नेह है..उसके अंदर आत्मसम्मान...निडरता है जब उसे अपना सबकुछ खत्म होते दिखता है तो वह लड़ जाता है। 


यह नायक है बिल्कुल फिल्मों का नायक संघर्ष जीता है हारते हुए भी कभी नहीं हारता हमेशा लड़ाई के लिए तैयार। उसकी अच्छाई उसके विरोधी को भी परिवर्तित करती है. दो घंटे की फ़िल्म आपको शुरू से अंत तक बांधे रखती है। फिल्म का स्क्रीनप्ले फ़िल्म के दिखाए दृश्य बिल्कुल अदभुत है उनके लिए तो बिल्कुल ही जिन्होंने केरल या समुद्र किनारे बसे गांवों को नहीं देखा है। हिंदी के दर्शकों के लिए यह फ़िल्म देखनीय है.

अरविंद साहू (AD) Freelance मनोरंजन एंटरटेनमेंट Content Writer हैं जो विभिन्न अखबारों पत्र पत्रिकाओं वेबसाइट के लिए लिखते है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी सक्रिय है, फिल्मी कलाकारों से फिल्मों की बात करते है। एशिया के पहले पत्रकारिता विश्वविद्यालय माखन लाल चतुर्वेदी के भोपाल कैम्पस के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के छात्र है।

Post a Comment

0 Comments

Close Menu