एमपी नाउ डेस्क
आचारी (Aachari) BAA FILM REVIEW: आज समाज सबसे अधिक नैतिकता के पतन की ओर अग्रसर है...जो मां - बाप अपने बच्चों को पढ़ाने लिखाने और समाज में एक प्रतिष्ठित नागरिक बनाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते है...उन्हीं बच्चों के द्वारा थोड़ी सी सफलता के गुमान में उन मां- बाप को नीचा दिखाना या उनके त्याग को कम- तर आंकना आज एक फैशन हो गया है। मां- बाप अपने बच्चों की खुशी के लिए अपने सारे ग़म को भूल जाते है लेकिन वही बच्चा जब बड़ा होते ही बत्तमजी में उतर आता है तो उन मां- बाप का दिल बहुत दुखता है ऐसी ही एक कहानी को स्क्रीन में "आचारी बा" नाम से जियो स्टूडियोज, हार्दिक गज्जर फिल्म्स और बैकबेंचर पिक्चर्स ने पेश किया है।
कहानी एक ऐसी मां की है, जो गांव में अकेले रहकर अपने आचार का व्यवसाय करती है... जहां उसकी सहायता कुछ स्थानीय महिला और एक युवक करता है। अपने जीवन को हंसी -खुशी काट रही बा (नीना गुप्ता) के मन में एक टीस है, उसका इकलौता लड़का मुम्बई में जो उससे दस वर्षों से नहीं मिला है लेकिन एक दिन अचानक वह उससे मिलने की इच्छा जताता है। बा (नीना गुप्ता) पिछली सारी बातों को भूलकर अपने बेटे-बहु और पोते से मिलने के लिए मुंबई चल पड़ती है। मुंबई पहुंचते ही सबसे बड़ा झटका बा को तब लगता है जब उसे पता चलता है कि उसके बेटे ने अपने पालतू कुत्ते की देखवाल के लिए उसे बुलाया है।
बा का अपने बेटे के इस प्रकार का व्यवहार से दिल पूरी तरह टूट जाता है लेकिन गांव में अपनी जान पहचान वालों के सामने ऐसी सब बातें समाने न आए इसके लिए बा जैनी के साथ अपने बेटे के घर में रहने लगती है। बेटा अपनी पत्नी और बेटे के साथ दार्जिलिंग छुट्टियां मनाने चले जाता है..अकेली बा और जैनी (पालतू कुत्ते) के बीच एक आत्मीय रिश्ता बन जाता है। अपने ही बेटे के दिल में उसके लिए लगाव या किसी भी प्रकार का अपनापन नज़र न आने का दुःख वही अन्य लोगों के साथ इस दौरान बने भावनात्मक रिश्तों की 1 घंटे 38 मिनट की कहानी जियो हॉटस्टार में बीते 14 मार्च को स्ट्रीम की गई थी।
पंचायत वेव सीरीज की सरपंच नीना गुप्ता ने फिल्म ‘आचारी बा’ में बा का पात्र निभाया है...अपना सबकुछ न्योछावर करने के बाद एक बड़े अकेलेपन से जूझती हुई एक महिला का किरदार बहुत ही बेहतरीन ढंग से निभाया है। बा के किरदार में नीना गुप्ता ताकतवर, स्वाभिमानी, भावुक, स्नेही मां के किरदार को पर्दे में उतारने में कामयाब हुई है। बा के बेटे के रोल में वत्सल सेट और अन्य सहयोगी कलाकारों के रूप में कबीर बेदी, वंदना पाठक जैसे कलाकार भी मौजूद है। कुल मिलाकर फ़िल्म दशकों को भावनात्मक रूप से जोड़ने में कामयाब होती नजर आती है, फिल्म आपकों हंसाती है..रुलाती है...अंत में सोचने पर मजबूर करेगी।
अरविंद साहू (AD) Freelance मनोरंजन एंटरटेनमेंट Content Writer हैं, जो विभिन्न अखबारों पत्र पत्रिकाओं वेबसाइट के लिए लिखते है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी सक्रिय है, फिल्मी कलाकारों से फिल्मों की बात करते है। एशिया के पहले पत्रकारिता विश्वविद्यालय माखन लाल चतुर्वेदी के भोपाल कैम्पस के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के छात्र है।
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