जब मन ही काला हो काले कपड़े पहनकर प्रदर्शन करने की क्या ज़रूरत !



एमपी नाउ डेस्क



संसद के मानसून सत्र चल रहा है ऐसे में मणिपुर मामले को लेकर लगातार विपक्ष सरकार को घेर रहा है. विपक्ष ने तय किया है कि विपक्षी गठबंधन इंडिया के सभी सांसद लोकसभा और राज्यसभा में काले कपड़े पहनकर जाएंगे. कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल मणिपुर की स्थिति पर विस्तृत चर्चा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बयान की मांग कर रहे हैं. उन्होंने 20 जुलाई को संसद के मानसून सत्र की शुरुआत के बाद से लोकसभा और राज्यसभा दोनों में विरोध प्रदर्शन और नारेबाजी की, जिससे दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी. अब विपक्षी पार्टियों का समूह संसद में काले कपड़े पहनकर मणिपुर हिंसा के खिलाफ़ विरोध दर्ज कर रहा है. किसी भी प्रकार के विरोध और प्रदर्शन के लिए काले कपड़े का उपयोग किया जाता है. विरोध प्रदर्शन के लिए काले कपड़ों का इस्तेमाल आज से ही नहीं बल्कि सदियों से किया जाता रहा है। दरअसल, पूरी तरह विरोध के लिए काले कपड़े पहनने की शुरुआत अमेरिकी महाद्वीप से मानी जाती है।सबसे पहले प्यूरिटन्स यानी ईसाई धर्म के शुद्धतावादियों ने काले लिबास को कैथोलिकों के विरोध में अपनाना शुरु किया था। कैथोलिक उजले, नीले, लाल और आकर्षक रंगों वाले कपड़े पहनने की सलाह लोगों को देते थे। उस समय के कुलीन ऐसे रंगों का ही ज्यादा इस्तेमाल करते थे जबकि, काले रंग के कपड़ों को नकारात्मक मान लिया जाता था। प्यूरिटन्स ने काले कपड़ों को पोशाक के तौर पर अपनाकर अपने विरोध को एक आवाज दी।वही भारत में देखें तो काले कपड़ों के माध्यम से विरोध प्रदर्शन की शुरुवात अंग्रेजो के दौर में हुई जब फरवरी 1928 के दौरान काले झंडे लिए 'साइमन गो बैक' के नारे लगाते हुए प्रदर्शनकारी ने अंग्रेजी प्रशासन का विरोध किया पर तब का समय और अब समय काफ़ी बदल चुका है.पूर्व में हुए प्रदर्शन में भाग लेने वाले क्रांतिकारियों और देशभक्तों के अंदर एक वैश्विक और सुदृढ़ भारत के लिए एक आजाद भारत का सपना और देशभक्ति से ओत प्रोत विचारधारा थी। उन लोगों के मध्य वैचारिक मतभेद भले ही हो लेकिन एक दूसरे के प्रति मन भेद की जगह कभी उत्तपन्न नही की। देश के विरोध में कभी नहीं सोचा हमेशा ही देश की अखंडता अक्षुण्णता के लिए संघर्ष किया। अब समय बदल चुका है, राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के लिए प्रदर्शन के स्वतंत्रता के बाद तो अक्सर ऐसे मौके आते हैं जब सामाजिक और राजनीतिक विरोध प्रदर्शन में काले झंडों का इस्तेमाल देखने को मिलता है। इतना ही नहीं अब तो काले पोशाक, टोपी के अलावा काली पट्टी बांधकर भी विरोध किए गए हैं। पर अब इन विरोध प्रदर्शन में काले कपड़ों के प्रदर्शन के साथ - साथ राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के मन काले नजर आते है। ऐसे में एक ही विचार उत्पन्न होता है..

  " जब मन ही काला हो काले कपड़े पहनकर प्रदर्शन करने की क्या ज़रूरत ! "


अरविंद साहू (AD) Freelance मनोरंजन एंटरटेनमेंट Content Writer हैं जो विभिन्न अखबारों पत्र पत्रिकाओं वेबसाइट के लिए लिखते है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी सक्रिय है, फिल्मी कलाकारों से फिल्मों की बात करते है। एशिया के पहले पत्रकारिता विश्वविद्यालय माखन लाल चतुर्वेदी के भोपाल कैम्पस के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के छात्र है।

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