विभिन्न अक्रांताओ की लाख कोशिशो के बाद भी जिस किले का बाल भी बाका ना हो सका!



एमपी नाउ डेस्क


जिब्राल्टर ऑफ इण्डिया/ इतिहास


आज हम बात कर रहे है मध्यप्रदेश के ग्वालियर के किले की। इसे अपनी मजबूती के कारण भारत का जिब्राल्टर कहा जाता है।
 अपने राज्य की सीमाओं को सुरक्षित रखने और बाहरी आक्रमणो से बचाव के लिए किले का निर्माण राजाओं और महाराजाओं के द्वारा प्राचीन भारत में किया जाता था। ग्वालियर का किला जिसे किले का सिरमौर कहा जाता है इसका निर्माण 525 ईसवी में राजा सूरज सेन ने करवाया था राजा सूरज सेन ग्वालियर के स्थानीय शासक थे जो पाल वंश से संबंधित है ।

            
कहा जाता है कि राजा सूरज सेन चर्म रोग से पीड़ित थे। जब राजा सूरज सेन का रोग ठीक नहीं हो रहा था तो वह परेशान होकर महल से निकल जाते हैं तब इनकी मुलाकात ऋषि गालव से होती है ऋषि गालव के आशीर्वाद से राजा सूरज सेन का रोग समाप्त हो जाता है इसीलिए ऋषि गालव की स्मृति में गोपांचल पहाड़ी के ऊपर ग्वालियर किले का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से सूरज सेन के द्वारा कराया जाता है।


3 किलोमीटर स्क्वेयर में फैला हुआ किला जिसकी 12 किलोमीटर लंबी दीवारे और ऊंचाई 104 मीटर है। हाथीफोड़, आलमगीर, हिंडोला,चतुर्भुज, गुजरी महल दरवाजा इस किले में  पांच प्रमुख दरबाजे हैं। अपने भीतर सुंदरता के कई पैमाने समेटे ग्वालियर का किला पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र है।

चाहे हम बात कर ले गुजरी महल, की शाहजहां महल की, सूरज कुण्ड की या तेलियो द्वारा निर्मित तेली का मंदिर जो भगवान शिव को समर्पित है । वैसे आपको एक बात बताएं यहां एक मंदिर है जिसका नाम है सास बहू का मंदिर वैसे यह एक अपभ्रंश नाम है इसका पौराणिक नाम है सहस्त्रबाहु मंदिर जहां विष्णु भगवान  के पद्मनाभ रूप की 32 मीटर ऊंची और 2.3 मीटर चौड़ी प्रतिमा है। यहां भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित एक अन्य मंदिर भी है जिसका नाम है चतुर्भुज मंदिर जो भक्तो की आस्था का केंद्र है। यहां प्रदेश का सबसे बड़ा गुरुद्वारा भी स्तिथ है। इस किले के निकट आदिनाथ का मंदिर भी है जो जैन धर्म से संबंधित है । ग्वालियर फोर्ट की इतनी  खासियत जानने के बाद शायद ही कोई हो जिसका यहां घूमने का मन ना करे।तो कभी आप ग्वालियर जाए तो किलो का रत्न कहलाने वाले ग्वालियर फोर्ट को जरूर विजिट करें।

लेख शानू साहू

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