82 साल की उम्र में भी अदभुत कला की धनी जोधइया बाई



एमपी नाउ डेस्क


कला/ जनजाति/ संस्कृति

कला। कई व्यक्तियों को अलग-अलग प्रकार की कला सीखने का शौक भी होता है और कला से आप अपना नाम भी रोशन कर सकते हैं। कला व्यक्ति के सम्मान व जीवन जीने का स्रोत भी बन सकता है। भारतीय संस्कृति में बहुत सारी कलाएं आपको देखने को मिलती है जैसे चित्रकला, नृत्य कला, संगीत कल, नाट्य कला और हस्तशिल्प कला आदि। बात हमारे देश की हो या दूसरे विदेशों की हर जगह कला का स्थान ऊंचा ही दिया गया है। आज हम उस व्यक्तित्व से आपको रूबरू कराएंगे जिसकी उम्र है पच्चासी , और वो कहलाती है उमरिया की आदिवासी

मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल उमरिया जिले के एक छोटे से गांव लोढ़ा में रहने वाली जोधइया बाई 40 साल से भी ज्यादा समय से आदिवासी पेंटिंग्स बना रही हैं। 82 साल की उम्र में भी उनके हाथ कैनवास पर खूबसूरत चित्रों को उकेर रहे हैं। वे प्रदेश की जनजातीय कला को अपने रंगों से सजा कर युवा पीढ़ी को मध्य प्रदेश के ट्राइबल आर्ट से रूबरू करा रही हैं। जोधईया बाई कभी स्कूल नही गई जिसे कभी कलम पकड़ने का हुनर भी नही था वह  आदिवासी महिला कूची पकड़ कर कमाल कर गई। 30 की उम्र में पति का साथ छूटा और संघर्षों से नजदीकी बढ़ी बाबजूद इसके जोधईया बाई ने हार नहीं मानी । परिवार का पालन पोषण ठीक से हो सके इसलिए उन्होंने खेती मजदूरी आदि काम भी किया।


जोधइया बाई ने विलुप्त होती बैगा चित्रकला को एक बार फिर जीवंत कर दिया है।  बड़ादेव और बघासुर के चित्र कभी बैगाओं के घरों की दीवार पर सजते थे वे अब दिखाई नहीं देते और न ही उन्हें नई पीढ़ी के बैगा जानते हैं। उन्हीं चित्रों को जब जोधइया ने कैनवास और ड्राइंग शीट पर आधुनिक रंगों से उकेरना शुरू किया तो बैगा जनजाति की यह कला एक बार फिर जीवित हो उठी।

80 की उम्र में जब उम्मीदें टूट जाती हैं तब जोधइया बाई की उड़ान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शुरू हुई है। इटली के मिलान शहर में लगी उनके चित्रों की प्रदर्शनी की सबसे खास बात यह है कि इसके लिए जोधइया बाई  अपनी तरफ से कोई कोशिश नहीं की, बल्कि उनकी कलाकृतियां ही ऐसी थीं, जिनसे प्रभावित होकर लोगों ने उन्हें वहां तक पहुंचा दिया। स्थानीय कला प्रेमी आशीष स्वामी की नजर इन चित्रों पर पड़ी, जिन्होंने भोपाल के बोन ट्राइवल आर्ट में ट्राइबल आर्ट की जानकार पद्मजा श्रीवास्तव को इसकी जानकारी दी। सभी इनसे इतने प्रभावित हुए कि इन चित्रों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचाने का मन बनाया। इटली की गैलेरिया फ्रांसिस्को जनूसो संस्था से संपर्क किया गया। वे भी जोधइया बाई के चित्रों से प्रभावित हुए और उन्हें इटली में प्रदर्शित करने की स्वीकृति दे दी। इस तरह जोधइया बाई की कला देश की सरहद को लांघकर इटली पहुंच गई। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय भोपाल में जोधइया बाई के नाम से एक स्थाई दीवार बनी हुई है जिस पर इनके बनाए हुए चित्र हैं। नारी शक्ति का अद्भुत उदाहरण पेश करने वाली जोधईया बाई ना सिर्फ आदिवासी समुदाय बल्कि समूचे भारत के लिए प्रेरणा का विषय है।

लेख शानू साहू

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