"भगोरिया उत्सव" जनजातियों द्वारा मनाया जाने वाला अनोखा त्यौहार



एमपी नाउ डेस्क



पर्व/ संस्कृति/त्योहार/जनजाति
संस्कृति। अगर बात आदिवासी जनजातियों की कि जाए तो मध्यप्रदेश के संदर्भ में भीलों का दबदबा यहां देखने को मिलता है। होली के पर्व की तैयारियां चल रही हैं तो भीलो की बात क्यों नहीं की जाए वैसे आपको तो पता ही होगा  और अगर नहीं भी है तो आज हम आपको बताने वाले है भीलो द्वारा मनाए जाने वाला ऐसा त्यौहार जिसमें युवक और युवती भाग कर अपनी पसंद से विवाह करते हैं वह भी परिवार की रजामंदी के साथ आपको जानकर हैरानी तो नहीं हो रही ना। जी हां हम बात कर रहे हैं भील जनजाति द्वारा बनाए जाने वाले भगोरिया उत्सव की।

होली के 7 दिन पूर्व से ही भील अपना एक खास त्योहार मनाने लगते हैं जिसका नाम है भगोरिया उत्सव। इस समय धार अलीराजपुर  व मध्यप्रदेश में भीलो का गढ़ कहा जाने वाला झाबुआ इत्यादि के बाजार भगोरिया हाट का रूप ले लेते हैं। 
भगोरिया उत्सव भील जनजाति के युवक-युवतियों के लिए विवाह के संबंध में स्वीकृति का एक जरिया है यहां युवक और युवती  विवाह के लिए अपनी इच्छा से एक दूसरे को पसंद करते हैं। पहले तो मेले में अपना जीवनसाथी पसंद करना और उसके बाद विवाह की पेशकश व स्वीकृति का ढंग बिल्कुल ही निराला है धारणा है कि यदि युवक युवती के गाल में गुलाल लगा दे और सहमति से युवती भी युवक के गाल में गुलाबी गुलाल लगा दे तो समझो कि शादी पक्की। और भी तरीके हैं यहां पर, युवकों के द्वारा युवतियों को विवाह की पेशकश करने के  यदि लड़के द्वारा दिया गया पान लड़की खा लेती है तो इसे भी लड़की के द्वारा विवाह के लिए राजी होना माना जाएगा।
रंग बिरंगी वेशभूषा में यहां पर युवती सिर से पैर तक चांदी के आभूषणों  से सुसज्जित हो अपनी लोक संस्कृति का प्रदर्शन व  पालन करती है । सिंदूरी(लाल रंग की साड़ी), लुगडा(ओढ़नी) भीली युवतियों के प्रमुख वस्त्र अलंकार है। हाथों में गुदना कराना और परिजनी जो की पीतल की एक चूड़ी होती है इनके श्रृंगार में प्रमुख है। पुरुष भी सिर पर साफा की तरह धारण करने के लिए पोत्या , फेंटा व कमर पर फालू (अंगोछा )बांध कमर से नीचे पहने जाने वाले वस्त्र खोयतु में किसी 80 के दशक के हीरो की तरह युवतियों को प्रभावित करते नजर आएंगे। 

जनजातीय प्रमुख क्षेत्रों में लगने वाले भगोरिया उत्सव में रंग बिरंगी पोशाक, विभिन्न विभिन्न प्रकार के व्यंजन व ढोल- ताश के साथ होली का पर्व बड़ी ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। मेले में होली से जुड़ी हुई सामग्रियों का क्रय विक्रय होता है और इसमें सभी समाज के लोग खरीददारी करते हैं। भगोरिया उत्सव ना सिर्फ आदिवासी बहुल क्षेत्र ,ना सिर्फ मध्य प्रदेश वरन पूरे भारत में प्रसिद्ध है। उत्सव आरंभ हो इससे पहले ही देखने के लिए लोग देश-विदेश से आने लगते है।
वैसे कुछ लोग भगोरिया हाट को आदिवासियों का वैलेंटाइन  वीक और प्रणय सप्ताह आदि नाम देकर दुषप्रचारित कर रहे थे। परंतु समाज के जागरूक कार्यकर्ताओं द्वारा लोगों के षड्यंत्र को रोका जा रहा है।


लेख : शानू साहू

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