एमपी नाउ डेस्क
लेख अरविंद साहू (mcu छात्र)
वृतांत। mcu मैं एडमिंशन के बाद भोपाल आने की प्रक्रिया में काफ़ी समय लगा कई बार प्लान तैयार होने के बाद भी आखरी मौके में रद्द करना पड़ जाता था.ऐसे में मेरे परिचितों की चिंता ऐसे होती थी जैसे उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी चिंता भोपाल में मुझे देखना ही हैं.फिर क्या चिंता ख़त्म करना मेरा परम कर्तव्य बन जाता है. मैंने अपना वेक्सिनेशन करवाया और निकल पड़ा बस स्टैंड की उस बस की तरफ जिसे भोपाल गंतव्य स्थान तक पहुँचने का रोजाना काम होता था।
450 की टिकट में एक ऐसी खटारा बस का 7 घण्टे का सफर जब 11 घण्टे में परिवर्तित हो जाए तो मुझ से बड़ा दुर्भागी बस यात्रा के मामलें में कोई दूसरा नही होगा में हमेशा से बस में सफर करना टालता हूं। इसकी मेरी एक अलग मज़बूरी है. suffocating in the journey ( सफर में घुटन) vomiting(उल्टी) से हमेशा रूबरू होना पड़ता है. फिर भी इस यात्रा को बस से पूरी करना मेरी मजबूरी थी अन्य कोई रास्ता फ़िलहाल उस समय मौजूद नही था. खटारा बस का वह सफर तक़रीबन रात 12 बजे से 4 बजे तक एक ऐसे स्थान में तकरीबन 30 किलोमीटर के दायरे में थम जाता है जहाँ दूर दूर तक किसी भी प्रकार की कोई सुविधा नही है इसकी वजह बस का बलून फट्टना बलून बस में सस्फेशन का कार्य करता है जिस से बस का संतुलन बना रहता है. रात की जदोजहद अपने मस्तिष्क के यातना को दूर करने का एकमात्र साधन वार्त्तालाप से बड़ा कुछ हो ही नही सकता. अपने स्वभाव अनुसार दो लोगों को ढूंढ ही लिया में हमेशा से लोगों की लाइफ में झांकना चाहता हूं उनके अच्छे या बुरे निर्णय को जानकर अपनी जिंदगी दिशा तय करने की कोशिश करता हूं.दोनों ही लड़के wcl( वेस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड ) क्षेत्र से आते है. मतलब दोनों एक सामान्य परिवार(आर्थिक स्थिति) से आते है. उनके बारे में जानकारी लेने से पता चला एक लड़का रेल्वे ग्रुप c का एग्जाम पास कर चुका था दूसरा पॉलिटेक्निक भोपाल में आर्किटेक्ट स्टडी डिप्लोमा कर रहा था।
बातों ही बातों में रेल्बे का एग्जाम पास कर चुके व्यक्ति ने जानकारी दी वह अपने बेरोजगारी के समय मे पत्रकारिता के पेशे में आ गया उसकी वजह थी एक कड़क थानेदार मैडम जो उसके ग्रामीण क्षेत्र में पोस्टिंग होकर आ चुकी थी. जिस से उसका एक अलग बड़ा धंधा जिसे लोग जूआ कहते है बंद होने की कगार में था।
पत्रकारिता बनी सहारा
में बड़े ही भोले मन से उससे पूछ रहा था भैया ये पत्रकार और जुआँ का सयोंग कैसा है. जुआँ खिलाने और पत्रकारिता में क्या मेल है तो वह बड़े ही दम्भ से बताने लगा यदि आप पत्रकार हो तो आप कुछ भी कर सकते हो मैंने पूछा कुछ भी मतलब जरा विस्तार से बताएं फिर दम्भ से किसी को भी डरा धमका सकते है. मेने बोला भाई ऐसे कैसे फिर वह बोला जब आपके पास माइक आईडी होती है लोग डरने लगते है मैंने बोला भई क्यो डरने लगते है.मैंने तो सुना है पत्रकार का काम सवाल पूछना होता है जहाँ तक हम जानते है डराना नही पत्रकारिता तो बड़ा जिम्मेदारी का पेशा होता है. गलत कामों को उजागर कर जनता को सही जानकारियां मुहैया कराना एक पत्रकार का काम होता है। वह बोला भैया कहाँ रहते हो क्या किताबी बातें बोल रहे हो कही बाहर से हो क्या? नही मैंने कहाँ में तो छिंदवाड़ा से हूँ। फिर उसने कहाँ बाहर रहते होंगे ? मेने बोला भई इतनी भी क्या गलत बात कह दी मैंने की में छिंदवाड़ा में रहने लायक नही रहा.
नही भाई हम तो ऐसा ही करते है मेने पूछा कैसा भाई तो कही रोड निर्माण हो रहा है भवन निर्माण हो रहा है सरकारी मद से तो वह घटिया निर्माण की बात करके डराते है और पैसे बनाते है. मैंने कहा इतना आसान है पैसे बनाना ? हां बिल्कुल है मैने तो कालरी क्षेत्र में (कोल बेस्टन लिमिटेड) के एक बड़े अधिकारी को इसी प्रकार डराया था. मैंने पूछा कैसे उसे मैंने कोर्ट में जाने की धमकी दी थी मैंने पूछा कौ न से कोर्ट में वह बोला एक कोर्ट है नागपुर में जिसे मैंने भी आज तक नही देखा.
मैंने बोला गजब दबंगाई है भाई तुम्हारी हा बिल्कुल है नेता हो या प्रशासन का कोई भी अधिकारी डरता है पत्रकार से मैंने बोला भई ऐसी पत्रकारिता तो हम ने न पढ़ी. क्या मतलब पढ़ी नही ?
मैंने कहाँ पत्रकार और पत्रकारिता समाज का आईना होती है. जो समाज को प्रतिबिंब दिखाता है उसका असली चरित्र फिर मेरी बातों से उसका मस्तक ठनक गया. ये क्या कह रहे हो तुम हमारी जगह में नही हो नही तो तुम ऐसी बातें नही करते फिर पुनः कहा रहते हो? क्या करते हो? उसका उच्चारण हुआ मैंने कहा ये मेरे बताने से क्या होगा में क्या करता हूं।फिर मैंने पुनः उस से कहाँ अब कैसी चल रही है तुम्हारी वह दबंगाई पत्रकारिता ? मैंने बंद कर दी लॉक डाउन के बाद से अच्छा रेल्वे में सेलेक्शन हो गया इसलिए क्या ?
अब तो अच्छा पेमेंट मिलेगा जिंदगी पटरी में आ जायेगी मैंने उसे कहाँ इस लिए बंद कर दी होगी. उसने उत्तर दिया नही जुआँ मेरा धंधा है पत्रकारिता उसका जरिया तो दोनों होते रहेंगे.फिर रेल्वे की जॉब का क्या ? पकड़ा गए किसी दिन जुआँ में तो जेल जाना पड़ेगा शायद कभी नोकरी से भी हाथ धोना पड़े फिर क्या करोगें?
मुझे कौन पकड़ेगा में तो पत्रकार हूं अब तो मेरे चेहरे में एक मुस्कान थी ऐसी पत्रकारिता और पत्रकार को देखकर निःशब्द हो चुका था. पत्रकारिता का एक अपना स्वर्णिम काल था, और आज एक ऐसा समय है। इसके स्तर में और गिरावट आएगी और पतन भी हो. पर हर अस्त होते सूरज की शाम के बाद उगते हुए सूरज की किरण नजर आती है। इन सब बातों के बीच उन सभी अंधेरो को चीरकर कुछ लोग निकलते है जो पत्रकारिता के सही मायने सीखाते है.
जिनका अनुसरण कर आज भी लाखों की संख्या में नोजवान बच्चे बच्चियां पत्रकारिता में अपना भविष्य खोंजने के लिये मीडिया की बड़ी बड़ी संस्थानों की और कूच करते है। ये पेशा है ही इतना ग्लैमरस इसके आगोश में हर एक शख्स समा जाना चाहता है।
3 Comments
Bahut sahi baat kahi aapne. Hame ek achhi seekh mili ☺️🙏
ReplyDeleteExcellent my dear Bhai u are 💯 right
ReplyDeleteSatik sabdo ke sath sach ka aagrah👍👍
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