पांच दिन चलने वाले दीपावली पर्व में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व अन्नकूट पूजा नाम भी है प्रचलित ।



एमपी नाउ डेस्क



धर्म। दीपावली पर्व की शुरुआत हो चुकी है. पांच दिनों तक चलने वाले पर्व की रौनक कोरोना रूपी महामारी के बाद सामान्य होते जन जीवन और महंगाई से थोड़ी फ़ीकी पड़ी है. फिर भी  लोगों का उत्त्साह कम नही हुआ लक्ष्मी पूजन के एक दिन बाद होने वाले गोबर्धन पूजा जिसे अन्नकूट महोत्सव के नाम से भी बनाया जाता है. भगवान कृष्ण गोर्वधन पर्वत गाय को समर्पित पर्व प्रकृति समर्पित हैं।इस दिन तरह- तरह के पकवानों के भोग से प्रकृति को खुश किया जाता है। मथुरा के आस पास के क्षेत्रों में गोवर्धन पूजा बहुत ही भव्य स्तर में मनाई जाती है। 


पौराणिक कथाओं के अनुसार गोर्वधन पूजा का प्रारंभ द्वापर युग से माना जाता है. हिन्दू मान्यतों अनुसार भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण ने देवताओं के राजा इंद्र की पूजा के स्थान में गोर्वधन पूजन और गौ पूजा के लिए प्रेरित किया था. जिसके बाद इंद्र कुपित हो उठे और भीषण वर्षा के द्वारा गोकुल वासियों को भयभीत करना चाहा.जब गोकुल वासी  भयभीत होकर कृष्ण की शरण मे मदद मांगने पहुँचे तब कृष्ण ने अपने हाथ की छोटी सी उंगली में पूरा गोर्वधन पर्वत उठा लिया जिसके नीचे गोकुल वासी को अभय प्राप्त हुआ. उसके बाद इंद्र का अभिमान चूर हो गया। फिर स्वयं भगवान कृष्ण ने 56 भोगों से गोवर्धन पर्वत एवं गो पूजा की तब से ही गोबर्धन पूजन का प्रचलन चला आ रहा है। 


गोर्वधन पूजा में नैवेद्य अर्पित कर इस मंत्र से करें प्रार्थना 
लक्ष्मीर्या लोक पालानाम् धेनुरूपेण संस्थिता।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु।।
सायंकाल पश्चात् पूजित गायों से पूजित गोवर्धन पर्वत का मर्दन कराएं. फिर उस गोबर से घर-आंगन लीपें. गोर्वधन महाराज अपनी कृपा प्रदान करेंगे।


प्रस्तुत लेख हिन्दू धर्म मान्यतों एवं धर्म पंडितों से चर्चा के आधार पर लिखा गया है।


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