फ़ूड ब्लॉगिंग के नाम पर अब सोशल मीडिया में उड़ेला जा रहा कचरा।





फ़ूड व्लॉगर- आहाहा, ओए होए, ओ भाई 


हमारे देश की खासियत है कि हम किसी भी चीज को बहुत जल्द सड़क पर ले आते हैं। कोई भी नई चीज हिंदुस्तान की जनता के बीच छोड़ दीजिए हम उस की ऐसी दुर्गति करेंगे कि पहचान नहीं पाएंगे आप। उदाहरण के लिए, चीन से आया कोई चाऊ माऊ अगर हमारा चौमिन और मंचूरियन खा ले, तो बिना रॉकेट की ही चांद पर पहुंच जाए। ऐसी ही दुर्गति हुई है फूड व्लॉगिंग नामक विधा की।


कुछ साल पहले जब विनोद दुआ एनडीटीवी पर जायका इंडिया का लेकर आये, तो पहली बार इस तरह की पत्रकारिता देखने को मिली। विनोद दुआ से भले ही आजकल लोगों के मतभेद हों, परंतु इसमें कोई दोराय नहीं है कि वे काफी जानकार व्यक्ति हैं। उन्होंने जायका इंडिया का में सच्ची फ़ूड व्लॉगिंग की थी। खाने की जगह का चुनाव, उससे जुड़ा इतिहास, लगने वाली सामग्री की बारीक जानकारी सब दिया करते थे। इसीलिए उनका शो आज भी यादगार है।


उसके बाद रॉकी एंड मयूर आए उनका मौज मस्ती भरा हाईवे ऑन माय प्लेट काफी लोकप्रिय हुआ, देशभर के रोडसाइड ढाबों से उन्होंने रूबरू करवाया, घुमक्कड़ी भी खूब की। इन सभी शोज़ में कंटेंट की गुणवत्ता थी, मनोरंजन तो खैर था ही। इनसे पहले केवल रेसिपी वीडियो आते थे, अब खाने के अनुभव को लेकर चर्चा होने लगी। कोई दूसरा खा रहा है, और हमें आनंद आ रहा है, यह बड़ा मजेदार लगता।


इसके बाद साहब दुर्घटना घट गई, यूट्यूब लोकप्रिय हो गया, डाटा सस्ता हो गया और रोजगार तो भारत में पहले से ही नहीं है, इसीलिए जिसका भी मन हुआ, वह फ़ूड व्लॉगर बन गया। नौजवानों की पूरी फौज, मोबाइल फोन,माइक लेकर बेचारे मासूम ठेले वालों और चाट की दुकानों पर टूट पड़ी। यूट्यूब पर एक ही दुकान के पचास वीडियो मिल जाएंगे। पहले पहल खुश होने वाले दुकानदार, अब इनके सवालों से हैरान हैं, उनकी सात पुश्तों तक की जानकारी खोद निकालते हैं। ग्राहकी के समय जब वे व्यस्त होते हैं, मुंह में माइक डालकर मशहूर व्यंजनों के राज पूछते हैं। अगर दुकानदार झल्ला जाए तो नेगेटिव रिव्यू डाल देते हैं, उसपर भी लाखो व्यू आ जाते हैं, कमाई के लिए ये भी सही है।


दुर्भाग्यवश किसी भी व्लॉगर को पाककला की मूलभूत समझ नहीं होती, दुकानदार जो भी उल्टा सीधा बनाए जाए, उसकी बस तारीफ करते जाना है, आहा आहा, ओहो ओहो करके। ढेर सारा अमूल बटर डल गया तो ओ भाई क्या बात है। खाना स्वादिष्ट हो गया बस, सेहत जाए गड्ढे में। ना मसालों की खबर है, ना विधि की जानकारी। नरेशन के नाम पर जो दिख रहा है, वही बोल दो। बाद में खाना चखकर झूठमूठ ओए होए, वाह जी वाह कर दो, बन गए फ़ूड व्लॉगर। वीडियो भी सबके एक जैसे, हर दुकान का सीक्रेट मसाला होता है जिसकी विधि किसी को नही बताते, सबकी तीसरी पीढ़ी है जो इस काम मे लगी है, और सब खाने में प्यार डालते हैं जी।


धीरे धीरे, खाने के मशहूर नाम इन्हें मना करने लगे हैं। जब पॉपुलर ठिये कई बार कवर हो गए तो अनजान ठेलों पर हमला बोल दिया गया। तेल से बना मेयोनेज़, नकली बटर और कद्दू से बना केचप उपयोग करने वाले, जिनकी दिन में बीस प्लेट भी नहीं बिकती, उन्हें नामी गिरामी बताया जाता है। बेचारे अल्पशिक्षित ठेलेवाले भी प्रसिद्धि के चक्कर में, और कैमरे के दबाव में, एक ही व्यंजन में तमाम तरह की सामग्री डाल देते हैं। जैसे सैंडविच में शिमला मिर्च, प्याज, टमाटर, चेरी और पाइनएप्पल सब एक साथ, उसके बाद पनीर, मेयोनेज़ और चीज के पहाड़ की तो पूछिये ही मत।


हमारे यहां, ज्यादातर खाने पीने की दुकानों पर सफाई नाम की चीज नहीं होती। ऐसे अत्यधिक गंदे ढाबों को व्लोगर्स कदीमी कह देते है, सरेआम गंदगी से बनाए जाते खाने का महिमामंडन किया जाता है, फिर कमेंट में बेहिसाब गालियां पड़नी स्वाभाविक है। जितना प्रचार नहीं होता उससे अधिक बदनामी हो जाती है दुकान की। खैर गलती उन्ही की होती है, पर सफाई के मामले में बहस करना हमारे यहां भैंस के सामने बीन बजाने जैसा है। लिहाजा उस ओर से आंख बंद रखिये, वरना जिंदगी भर घर पर ही खाना पड़ेगा।


पहले जो मनोरंजन था, वह धीरे-धीरे व्यापार बन गया। लाइक्स और व्यू देखकर नए होटल वाले इन्हें बुलाने लगे, पैसे लेकर झूठी तारीफों का सिलसिला चालू हो गया। खैर वो उनका प्रोफेशन है इसलिए हम टिप्पणी नहीं करेंगे। लेकिन ये जरूर कहेंगे कि जिस क्षेत्र से आप जुड़े हैं उसके प्रति आपकी जिम्मेदारी भी होती है। जब तक आप सही और सच्चे रिव्यू देते रहेंगे लोग सम्मान करेंगे, लेकिन बिना जाने समझे बस वीडियो ठेले जाएंगे तो एक दिन आपका चैनल तो डूबेगा ही, इस विधा की भी हानि होगी। सो खूब वीडियो बनाइये पर क्वलिटी और कंटेंट का महत्व मत भूलिए, लोगों से अनुभव और जानकारी बांटिए आहा, ओहो वो खुद कर लेंगे। 




लेख : अभिषेक चौरे (सीनियर आईटी  कंसलटेंट टेक प्रोजेक्टर)https://www.facebook.com/abhishek.chaurey



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