एमपी नाउ डेस्क
छिंदवाड़ा/पांढुर्णा
वैश्विक महामारी कोरोना के चलते देशभर में सभी धार्मिक आयोजनों सभा भीड़ भाड़ सार्वजनिक सभा जुलूस में सरकार ने पाबंदी लगाई है ऐसे में जिला प्रशासन छिंदवाड़ा ने पांढुर्णा में पोला उत्सव से शुरू होकर दूसरे दिन तक चलने वाला विश्व प्रसिद्ध गोट मार मेला कोरोना महामारी के चलते प्रशासन ने जनसमुदाय से इस बार न मानने की अपील की थी साथ ही पूरे क्षेत्र में धारा 144 लगाई गई थी और इस गोटमार मेले को सांकेतिक रूप से मनाने के लिए कुछ लोगों की मौजूदगी में पूजा अर्चना करने की स्वीकृति प्रदान की थी।
मगर जानकारी के मुताबिक लोगों की आस्था का प्रतीक गोटमार मेले के लिए पांढुर्णा और सावरगांव के लोगों ने प्रशासन को दो टूक शब्दो मे कह दिया है हम 364 दिन आपकी बात मानने के लिए तैयार है पर 1 दिन नही आज दिन भर पांढुर्णा ग्राम में स्थित जाम नदी के आस पास पत्थर चलते रहे ।
गोटमार मेंले का पुराना है 300 वर्ष पुराना है इतिहास।
गोटमार मेले का इतिहास 300 साल पुराना बताया जाता है। जाम नदी के दोनों ओर के लोगों के बीच खेले जाने वाले इस खूनी खेल के पीछे एक प्रेम कहानी जुडी हुई है। पांढुर्ना का एक लड़का नदी के दूसरे छोर पर बसे गांव की एक लड़की से प्यार करता था। उनकी इस प्रेमकहानी पर दोनों गांवों के लोगों को एतराज था।
एक दिन सभी के विरोध को झेलते हुए लड़का लड़की को गांव से भागकर लौट रहा था। अभी दोनों ने आधी नदी तक का ही सफर किया था कि दोनों ओर के ग्रामीणों को इसकी सूचना मिल गई और प्रेमीजोड़े पर दोनों तरफ से पत्थरों की बरसात होने लगी। इस पथराव में दोनों की मौत नदी के मझधार में हो गई।
आज भी प्रतीक स्वरूप एक झंडा नदी के बीच में गाड़ा जाता है और दोनों ओर के खिलाड़ी झंडे को गिराने और टिकाए रखने (एक ओर के खिलाड़ी झंडे को गिराने का प्रयत्न करते हैं और दूसरी ओर के खिलाड़ी इसे गिरने से बचाते हैं।) के लिए संघर्ष करते हैं। इस दौरान एक-दूसरे पर पत्थरों से हमला किया जाता है।
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