किरदार संस्थान द्वारा आयोजित माटी के रंग किरदार के संग संगीतकार अमजद खान व दिनेश पटवा ने ली छठवें सत्र की क्लास।


एमपी नाउ डेस्क

◆साझे प्रयास ही बन सकते हैं, नाटकों के लिए संजीवनी : श्री दुबे



किरदार संस्थान द्वारा आयोजित माटी के रंग किरदार के संग के छठवें सत्र में अमजद खान और दिनेश पटवा द्वारा सभी कलाकारों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। किरदार सचिव ऋषभ स्थापक ने बताया कि अमजद खान मानते हैं कि संगीत जीवन का अभिन्न अंग है। उन्होंने कहा कि यदि किसी मनुष्य के जीवन में संगीत नही है तो वह मनुष्य नही बल्कि पशुवत हो जाता है। साथ ही रंगमंच एक ऐसा स्थान है जहाँ संवाद की भी अपनी एक लय होती है। उन्होंने कहा कि यदि हम लय की बात करें तो हमारे सामान्य से बोलने, किसी को आवाज देने इत्यादि में भी एक लय होती है तथा एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि किसी भी नाटक का संगीत, उसकी मांग एवं क्षेत्र के अनुसार तय होता है। एक अभिनेता के लिए टाइमिंग का क्या महत्व है, पिच और वॉल्यूम में क्या अंतर है,नाटक में संगीत का ग्राफ क्या होता है, हम कैसे घर पर ही संगीत का रियाज़ कर सकते हैं और वो अभिनय के लिए कितना महत्वपूर्ण है इन सब बातों पर गहराई से प्रकाश डालते हुए संगीत की महत्ता समझाई। खास तौर पर stomp music के बारे में सभी कलाकारों को अवगत करवाया। उन्होंने यह भी बताया कि बात चाहे संगीत सीखने की हो या संवाद बोलना सीखने की हमे स्वर और व्यंजन दोनो का अभ्यास अवश्य करना चाहिए। कलाकारों के विभिन्न प्रश्नों के उत्तर देते हुए उन्होंने सभी को यह समझाया कि प्रत्येक व्यक्ति को संगीत का अभ्यास अवश्य करना चाहिए चाहे वह संगीत सीखा हुआ हो अथवा न हो क्योंकि उनका मानना है कि जो निरन्तर संगीत का अभ्यास करेगा उसके जीवन मे एक दिन ऐसा अवश्य आएगा जब वो पूरी लाइन न सही एक शब्द ही लय में गाए पर लय को पा जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने ऑनलाइन ही कलाकारों से कुछ अभ्यास करवाए।
इस ऑनलाइन कार्यशाला के रंग गुरू श्री विजय आनंद दुबे ने भी नाटकों में रंग संगीत के महत्व उल्लेखनीय बातें तो बताई ही वहीं साझे रंग प्रयासों को नाटकों की संजीवनी करार दिया। वर्कशॉप मेंटर नितिन जैन "नाना" द्वारा भी अपने लिखे गीतों में नाटकीयता की थिरक पर बात। इस दौरान फिल्मकार केशव कैथवास एवं बांग्ला निर्देशक अरविंद रंजन कुण्डू सत्र में उपस्थित रहे। सत्र समापन पर कार्यशाला निर्देशक डॉ. पवन नेमा एवं संयोजक शिरिन आनंद दुबे द्वारा आभार व्यक्त किया गया।

नाटकों की दुनिया का चर्चित नाम है अमज़द खान


बीते 3 दशकों से अमजद खान रंगकर्म के क्षेत्र में निरंतर अपनी रंगयात्रा जारी रखे हुए हैं वे किसी परिचय के मोहताज नहीं है उन्होंने कई नाट्य निर्देशकों के साथ कई नाटक प्रस्तुतियों में रंग संगीत दिया है साथ ही साथ वे अभिनय के भी महारथी माने जाते हैं। उन्होंने कई नाटकों का निर्देशन भी किया। वे बताते हैं कि विजय आनंद दुबे उनके प्रथम रंगगुरु हैं। जिन्होंने उन्हें नाटक की दुनिया में कदम रखने के लिए तैयार किया।

वही श्री अरविंद रंजन कुंडू से उन्हें संगीत की शिक्षा प्राप्त हुई। इस दौरान उन्होंने कई प्रख्यात नाट्य-निर्देशकों के साथ भी काम किया जिनमें विनोद विश्वकर्मा, सचिन मालवी, चैतन्य आठले, दीपक मालवी इत्यादि शामिल हैं। आज अमजद खान एक सक्रिय व कुशल रंगकर्मी के रूप में जाने जाते हैं। गौरतलब हो कि बीते वर्ष ओम् संस्था के नटरंग राष्ट्रीय नाट्य समारोह में श्री अमजद खान को "ओम रंग सम्मान" से भी नवाजा जा चुका है।

"बड़े" रंग संगीतज्ञ हैं दिनेश पटवा "छोटू"


 दिनेश पटवा उर्फ छोटू एक रिदमिस्ट के रूप में जाने जाते हैं लेकिन रंगकर्म में भी उनका अमूल्य योगदान है। उन्होंने बीते 25 वर्षों में कई नाटकों में अभिनय के साथ-साथ संगीत का भी भार संभाला है। नाट्य जगत में उन्होंने विजय आनंद दुबे को अपना गुरु बताया। वहीं संगीत की दुनिया में कुंज बिहारी सोनी, शेखर सरदेशपांडे, राजू विश्वकर्मा अरविंद रंजन कुंडू से उन्होंने संगीत की बारीकियाँ सीखी हैं। श्री पटवा ने कई नाटकों और नुक्कड़ नाटकों में संगीत तो दिया ही है, वहीं देश की सर्वश्रेष्ठ रामलीला में शुमार छिंदवाड़ा की रामलीला में बतौर अभिनेता भी पहचाने जाते रहे हैं।
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