एक्टिंग क्लास अभिनेता को तानसेन नहीं कानसेन होना चाहिए-अजय कुमार

एमपी नाउ डेस्क

राष्ट्रीय पुरस्कार सम्मानित अजय कुमार 
•नाट्यगंगा ऑनलाइन पाठशाला- बारहवा दिन

छिंदवाड़ा । नाट्यगंगा की आज की पाठशाला कई मायने में बहुत ही अनोखी थी। अनोखी से मतलब ऐसी कार्यशाला जिसमें सभी कलाकारों ने रंग संगीत को जिया। आज तक फिल्मो के गीतों का आनंद लिया था लेकिन आज की क्लास में रंगसंगीत सुना। सच में कितने कितने रंगों को अपने अंदर समेटे हुए है रंगमंच और जब उसमे संगीत अपनी सरगम डाल दे तो वह सचमुच आत्ममुग्ध करने वाला होता है। आज अपने रंगमंचीय और रंगसंगीत के अनुभव को रखने वाले अद्भुत कलाकार, निर्देशक, संगीत निर्देशक, विभिन्न मंचो पर राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से पास आउट श्री अजय कुमार जी हमारे अतिथि विद्वान थे। एक दर्जन कक्षाओं में आज की क्लास अपनी संख्या के अनुसार ही बहुत लंबी चली जिसमें अजय सर द्वारा बहुत ही सहजता से पहले तो कलाकारों से बातचीत शुरू की गई और आश्चर्य की बात तो ये है कि उस बातचीत के दौरान ही उन्होंने क्लास में रंगमंच तथा रंगसंगीत के कई पाठ इस तरह पढ़ा दिए कि लगा सर हमसे एकदम सामान्य बात कर रहें हैं और बड़े बड़े पाठ आसानी से सबकी समझ मे आ गए। सर ने उपस्थित कलाकारो पर ऐसा जादू किया कि 2 घंटे 40 मिनिट की क्लास के बाद भी सभी चाहते थे कि क्लास चलती ही रहे। अजय सर ने न सिर्फ कलाकारों के प्रश्नों के सटीक उत्तर दिए बल्कि उपस्थित वरिष्ठ जनों से नए कलाकारों की ओर से कुछ प्रश्न भी पूछे। कुल मिलाकर एक शानदार क्लास रही। ये कहना गलत नहीं होगा कि अजय सर ने सभी को अपना दीवाना बना लिया। आज अतिथि के रूप में अवतार साहनी जी, गिरिजाशंकर जी, सुशील शर्मा जी, वीणा शर्माजी, अनिल मिश्रा जी, मनोज नायर जी, ब्रजेश अनय जी, प्रीति झा तिवारी जी और विनोद विश्वकर्मा जी उपस्थित रहे। आज कार्यशाला का संचालन नीता वर्मा ने और आभार संदीप सोनी ने व्यक्त किया। कार्यशाला के निर्देशक श्री पंकज सोनी, तकनीकि सहायक नीरज सैनी, मीडिया प्रभारी संजय औरंगाबादकर और मार्गदर्शक मंडल में श्री वसंत काशीकर, श्री जयंत देशमुख, श्री गिरिजा शंकर और श्री आनंद मिश्रा हैं। आज की मुख्य बातें-कोई भी परंपरा कभी टूटती नहीं है बस मुड़ती है। जितना अच्छा संगीत सुनेंगे उतना अच्छा अभिनय करेंगे। वाद्य यंत्र के अलावा कलाकार अपने शरीर से कैसे संगीत उत्पन्न कर सकता है।निर्देषक का काम सिर्फ इतना है कि वो कलाकारों को बताए कि क्या नहीं करना है। जो निर्देशक कम जानते हैं वो कलाकारों को ज्यादा बताते हैं। वो अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहते हैं। कलाकार को तारीफ के साथ साथ आलोचना सुनने के लिए तैयार होना चाहिए। जिससे उनमें सुधार होता रहेगा। कलाकार को अपनी आवाज का उपयोग कैसे करना चाहिए।
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