माइम में कलाकार का शरीर ही सब कुछ होता है:- मनोज नायर

एमपी नाउ डेस्क

•नाट्यगंगा ऑनलाइन पाठशाला- ग्यारहवा दिन

छिंदवाड़ा । एक माइम के कलाकार का शरीर जिम्नास्ट की तरह, दिल कवि की तरह और दिमाग अभिनेता की तरह होना चाहिए। संवादों के साथ तो किसी बात पे हँसाना या रुलाना शायद आसान भी हो पर क्या कभी हमने ये सोचा कि बिना कुछ कहे कितना कुछ सुना जाना, महसूस करा जाना सम्भव है ? किसी अभिव्यक्ति के लिए हम शब्दों के मोहताज होते हैं  लेकिन अभिनय के लिए अभिव्यक्ति महत्त्वपूर्ण है चाहे वह संवाद के जरिए हो या भावों के जरिए। नाट्यगंगा की ऑनलाइन कार्यशाला के ग्यारहवें दिन मूक अभिनय विशेषज्ञ, लेखक, निर्देशक श्री मनोज नायर जी मुख्य वक्ता के रूप में हमारे साथ थे जिन्होंने मूक अभिनय की शुरुआत से लेकर उसके बदले हुए परिदृश्य का भी परिचय करवाया। उन्होंने बताया कि एक अभिनेता के लिए भाव कितने आवश्यक है । अच्छे मूक अभिनय के लिए एक अभिनेता में क्या क्या गुण होने चाहिए इसे बहुत ही सहजता के साथ समझाया तथा मूक अभिनय के खुद कुछ उदाहरण करके भी दिखाए । कार्यशाला में छिंदवाड़ा सहित देश भर के 53 कलाकारों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। अतिथि के रूप में रामचद्र सिहंजी, मुकेश उपाध्याय जी और विनोद विश्वकर्मा जी उपस्थित रहे। आज कार्यशाला का संचालन संजय औरंगाबादकर ने किया। कार्यशाला के निर्देशक श्री पंकज सोनी, तकनीकि सहायक नीरज सैनी, मीडिया प्रभारी संजय औरंगाबादकर और मार्गदर्शक मंडल में श्री वसंत काशीकर, श्री जयंत देशमुख, श्री गिरिजा शंकर और श्री आनंद मिश्रा हैं। आज की मुख्य बातें-माइम यानि मूकाभिनय की शुरूआत कैसे हुई। और उसकी आज क्या स्थिति है। माइम में कलाकार का शरीर ही उसकी प्रॉपर्टी होता है। जिसे वह अलग अलग तरीके से प्रयोग करता है। जब आप छोटे रोल करते हैं तब आप ज्यादा सीखते हैं। माइम करने के टेंषन रिलेक्सेशन एक्सरसाइज के क्या फायदे होते हैं और इसे कैसे किया जाता है। अपनी किसी कमी का ताकत कैसे बनाया जा सकता है। साइन लैंग्वेज और माइम में क्या अंतर होता है।अभिनय किसी भी परिस्थिति का पुर्ननिर्माण होता है।
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