नाट्यगंगा एक्टिंग की पाठशाला के निरंतर दस दिन पूरे।

एमपी नाउ डेस्क

जेपी सिंह जयवर्धन
छिंदवाड़ा ।  नाट्यगंगा ऑनलाइन एक्टिंग की पाठशाला ने आज निरंतर दस दिन पूरे कर लिए। इस कार्यशाला में आए राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय स्तर के विद्वानों और कुशल प्रबंधन का यह परिणाम है कि अब इस कार्यशाला में पूरे देश से कलाकार जुड़ने लगे हैं। आज दसवे दिन पूरे देश के 59 कलाकारों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। आज श्री जे पी सिंह जयवर्धन जी अतिथी विद्वान के रूप में हमारे साथ थे। भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ से मानद उपाधि प्राप्त श्री जे पी सिंह जी को उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी लखनऊ के द्वारा नाट्य लेखन के लिए 2007 में अकादमी सम्मान से सम्मानित किया गया है। आप विगत 40 वर्षों से रंगमंच में सक्रिय हैं। अभिनय, निर्देशन एवं प्रकाश परिकल्पना के साथ साथ आपने अनेक चर्चित नाटकों को लिखा है। आज कार्यशाला में आपने नाटक के प्रथम पड़ाव से अन्तिम पड़ाव तक के हर बिन्दु को सहज और विस्तृत ढंग से समझाया है। एक अभिनेता को नाटक के लिये कैसी तैयारी करनी चाहिये के साथ आपने नेता और अभिनेता के अर्थ में अंतर बताया। एक नाटक में पात्र का क्या अर्थ है, स्क्रिप्ट कैसे पढ़े, कितनी बार पढ़े, अपने सह कलाकारो के लिए क्या भावना होनी चाहिए। रिहर्सल के दौरान कौन कौन सी एक्सरसाइज लाभदायक होती है, नाटक शुरू होने के कितने समय पहले हमें स्टेज पर होना चाहिए आदि अनेकों बातें उन्होंने साझा कीं। इन बातों को सुनकर सारे कलाकार सर के इतने गहरे ज्ञान को सुनकर हतप्रद रह गए। और जितनी सहजता और सादे तरीके से उन्होंने सभी प्रश्नों के उत्तर दिए उससे सभी का मन उनके प्रति असीम सम्मान से भर गया। और आज की दसवीं क्लास सभी दृष्टि से अभूतपूर्व हो गई। आज कार्यशाला का संचालन अमजद खान ने और आभार वैशाली मटकर ने व्यक्त किया। कार्यशाला के निर्देशक श्री पंकज सोनी, तकनीकि सहायक नीरज सैनी, मीडिया प्रभारी संजय औरंगाबादकर और मार्गदर्शक मंडल में श्री वसंत काशीकर, श्री जयंत देशमुख और श्री आनंद मिश्रा हैं। आज की मुख्य बातें-नाटक में पात्र का क्या अर्थ क्या होता है। स्क्रिप्ट को कैसे और कितनी बार पढ़ना चाहिए। एक अभिनेता को कौन कौन से अभ्यास करना चाहिए। मंचन के पूर्व कलाकारों को क्या तैयारी करना चाहिए। किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। ग्रीन रूम के क्या मैनर्स होते हैं। वहां कैसा व्यवहार करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। मंचन के दौरान कलाकार और दर्शक के बीच कैसा संबंध होना चाहिए।
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