टीवी, सिनेमा और रंगकर्म में एक साथ सक्रिय राजीव वर्मा नाट्यगंगा में छात्रों की ली ऑनलाइन क्लास।



एमपी नाउ डेस्क

■ऑनलाइन पाठशाला का इक्कीसवा दिन

छिंदवाड़ा । नाट्यगंगा द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर की एक्टिंग की ऑनलाइन की पाठशाला के इक्कीसवे दिन टीवी और फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता एवं प्रसिद्ध रंगकर्मी राजीव वर्मा जी कलाकारों से रूबरू हुए। राजीव वर्मा उन चंद कलाकारों में से हैं जो टीवी और फिल्मों के साथ ही सक्रिय रूप से रंगमंच पर भी कार्य कर रहे हैं। आपने मैंने प्यार किया, हम साथ साथ हैं, चलते चलते, हम दिल दे चुके सनम, बुड्ढा होगा तेरा बाप, क्या कहना, अंदाज़, कच्चे धागे, हर दिल जो प्यार करेगा, जीत, कोई मिल गया, आरक्षण, बीवी न.1, परदेशी बाबू आदि आदि कई सुपर हिट फिल्मों में अभिनय किया है। श्री राजीव वर्मा सर ने अपने अभिनय की शुरुआत कैसे हुई से लेकर आज वो जिस मकाम पर हैं उसके बारे में बहुत ही सहजता एवं विस्तार से बताया। आज की कार्यशाला के दौरान सभी कलाकरों से मुखातिब होते हुए उन्होंने सभी कलाकारों के प्रश्नों का समाधान बड़ी ही सहजता से किया। रंगकर्म के लिए स्थान की कमी तथा छोटी जगहों पर मंच की अनुपलब्धता के प्रश्न पर उन्होने कहा कि रंगमंच तो कहीं भी बनाया जा सकता है बशर्ते हम रंगकर्म करना चाहते हों। सभी कलाकार उनकी सहजता को लेकर इतने उत्साहित थे कि बार बार सभी के मन मे ये प्रश्न उठ रहा था कि इतना बड़ा कलाकार इतना सहज कैसे ? आज की खास बात ये रही कि सर की धर्म पत्नी श्रीमती रीता वर्मा जी भी कार्यशाला में उपस्थित रहीं और उन्होंने प्रतिभागियों की ओर से प्रश्न भी पूछे। जिनका सर ने बड़ी रोचकता के साथ उत्तर दिया। ये बात तो सच है और इस कार्यशाला के दौरान हर दिन महसूस होती है कि जिसका जितना ऊँचा व्यक्तित्व होता है उसकी दृष्टि उतनी ही समानता की होती है। राजीव वर्मा जी के उत्साहित कर देने वाले सत्र के बाद संस्था के द्वारा एक विशेष सत्र आयोजित किया गया। दरअसल अभिनेता सुशांत सिंह की मृत्यु से पूरा कला जगत स्तब्ध है। इस विषय को गंभीरता से लेते हुए नाट्यगंगा ने कलाकारों में पनप रहे अवसाद के कारण और उसके निदान को ढूंढने के लिए एक परिचर्चा का आयोजन किया। इस सत्र में उपस्थित विद्वानों ने कलाकारों को अवसाद से बचने और लड़ने के उपाय बताए। तथा यह भी चर्चा की गई कि यदि हमारा कोई साथी किसी भी कारण से अवसाद में है तो हमें पूरी तरह उसका साथ देना चाहिए और उसे भावनात्मक सहयोग करना चाहिए। उसकी बातों को ध्यान से सुनकर उसे सकारात्मक दिशा देना चाहिए। साथ ही कोई भी व्यक्ति यदि किसी भी कारण से इस स्थिति से गुजर रहा है उसे बगैर शर्माए ये बातें अपने परिवार और दोस्तों से साझा करना चाहिए। विद्वानों ने बताया कि जैसे शारीरिक बीमारियां का इलाज संभव है उस ही तरह मानसिक बीमारियों का इलाज पूर्णतः संभव है। बस इसे समय से पहचान कर उचित डॉक्टर से परामर्श लेना आवश्यक है। आज अतिथि के रूप में अनूप जोशी जी, टीकम जोशी जी, सोषल स्टडीज की व्याख्याता डॉ शीमा फातिमा जी, भारतेंदु कश्यप जी फरीद खान जी और आशीष श्रीवास्तव जी उपस्थित रहे। आज का संचालन सवर्णा दीक्षित ने किया। कार्यशाला के निर्देशक श्री पंकज सोनी, तकनीकि सहायक नीरज सैनी, मीडिया प्रभारी संजय औरंगाबादकर, कार्यशाला समन्वयक रोहित रूसिया, सचिन मालवी, सुवर्णा दीक्षित और मार्गदर्शक मंडल में श्री वसंत काशीकर, श्री जयंत देशमुख, श्री गिरिजा शंकर और श्री आनंद मिश्रा हैं।
Close Menu