अभिनय नहीं करना ही सबसे अच्छा अभिनय है

एमपी नाउ डेस्क

छिंदवाड़ा । नाट्यगंगा छिन्दवाड़ा के आयोजन रंगमंच और सिनेमा की पाठशाला में आज अतिथि विद्वान के रूप में सिनेमा और नाटकों के ख्यातिलब्ध लेखक और निर्देशक श्री अशोक मिश्र जी उपस्थित रहे। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित श्री अशोक मिश्रा जी देश के जाने माने रंगकर्मी हैं। अनेक नाटकों में अभिनय के साथ ही साथ अपने उन्हें निर्देशित भी किया है। अपनी लेखनी की अद्भुत क्षमता से आपने सिनेमा में भी योगदान दिया है। आपकी लिखी हुई फिल्में वेलडन अब्बा, वेलकम टू सज्जनपुर, समर, नसीम, बवंडर ,कभी पास कभी फेल आदि प्रमुख हैं। आपको दो बार फिल्म लेखन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं। भारतीय टेलीविजन की सबसे महत्वपूर्ण कृति भारत एक खोज उनका लिखा बेहतरीन शाहकार है। कहते हैं कि संसार का सबसे अच्छा शिक्षक यात्री होता है। सिनेमा और नाटकों की यायावरी श्री अशोक मिश्रा जी को बेहतरीन रंगगुरु बना देती है। आज की पाठशाला में उन्होंने रंगमंच, स्क्रिप्ट लेखन, नाटक, वेब सीरीज़,कविताओं के प्रदर्शन, एक अच्छे अभिनेता में क्या गुण होने चाहिए के साथ-साथ अपने व्यक्तिगत अनुभव भी बांटे। उन्होंने पाठशाला में यह बताया कि बिना किसी बात का अनुभव किये उसके लेखन या अभिनय में जीवंतता ला पाना असंभव है। आज वर्कशॉप में अतिथि के रूप में फ़िल्म अभिनेता राजीव वर्मा जी, रवि झाँकल जी, वीणा मेहता जी, रीता वर्मा जी और फ़िल्म पार्श्व गायिका सुनिधि चौहान जी के पिता श्री दुष्यंत चौहान जी उपस्थित थे। आज संचालन सुवर्णा दीक्षित ने किया। आज कार्यशाला में 48 कलाकारों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। कार्यशाला के निर्देशक श्री पंकज सोनी, तकनीकि सहायक नीरज सैनी, मीडिया प्रभारी संजय औरंगाबादकर और मार्गदर्शक मंडल में श्री वसंत काशीकर, श्री जयंत देशमुख और श्री आनंद मिश्रा हैं।


आज की मुख्य बातें-एक अच्छी पटकथा की सबसे बड़ी विशेषता यही होती है कि उसका मंचन संभव होता है। फिल्मों में अभिनय करने से पूर्व रंगकर्मी करना बहुत जरूरी है। इससे आपके अभिनय में निखार आता है। सहज अभिनय कैसे किया जाता है। नाटक और फिल्मों के अभिनय में क्या अंतर है और इसमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। संवादों में बोलियों को प्रयोग किस तरह किया जाता है।अभिनय नहीं करना ही सबसे अच्छा अभिनय है।
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