किरदार की ऑनलाइन थियेटर वर्कशाॅप का तृतीय सत्र हुआ सम्पन्न

एमपी नाउ डेस्क

 •छिंदवाड़ा में बंग्ला रंगकर्म का भी है अमूल्य इतिहास: कुण्डू दा

संस्कार एवं संस्कृति हमे एक दूसरे से जोड़ती है एवं साहित्यिक दर्पण से ही समाज अपनी कमियों के आंकलन कर सृजन करने के सक्षम हो पाता है । यह शब्द है शहर के ख्यातिबद्ध बंगाली नाट्य निर्देशक एवं संगीतज्ञ अरविंद रंजन कुण्डू के। किरदार संस्थान द्वारा आयोजित 'माटी के रंग, किरदार के संग' ऑनलाइन वर्कशॉप में स्थानीय  कला विद्वानों के माध्यम से कलाकरो को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इस कार्यशाला में ओम मंच पर अस्तित्व का भरपूर सहयोग किरदार को प्राप्त हो रहा है। किरदार सचिव ऋषभ स्थापक ने बताया कि शुक्रवार को आयोजित ऑनलाइन कार्यशाला में जुड़े कुण्डू दादा ने कलाकरो से चर्चा करते हुए सकारात्मक विचार रखे। 

अरविंद रंजन कुंडू दा
उन्होंने छिंदवाड़ा में बंगाली रंगकर्म के इतिहास को विस्तृत रूप हुए कहा कि आठ दशक पूर्व से ही बंगाली कार्यक्रम प्रारम्भ हो चुके थे। जिसमें समसामयिक घटनाओं पर बड़े आयोजन होते रहे है। बांग्ला नाटक के लिए पहले कलाकारो को नागपुर से बुलाया जाता था इसके उपरांत पचास के दशक में रेलवे में कार्यरत कांजीलाल बाबू द्वारा मिसर कुमारी नाटक का मंचन स्थानीय कलाकरो के साथ किया गया था। चूंकि उस समय विद्युत व्यवस्था पर्याप्त नही हो पाती थी इसलिए पेट्रोमैक्स के माध्यम से मंचन किया जाता था साथ ही कलाकारो में प्रतिस्पर्धा भी हुआ करती थी निर्देशक द्वारा उसी कलाकार का चयन किया जाता था जिसकी आवाज दूर तक जा सके। दुर्गा पंडाल में माध्यम से बंगाली नाटकों की परंपरा अभी भी जारी है। उन्होंने बताया कि छिंदवाड़ा की नई पीढ़ी का झुकाव बंगाली नाटक में कम होना नए नाटक के लिए चुनोतिपूर्ण होता जा रहा है।

कार्यशाला का हर सत्र छिंदवाड़ा की माटी को समर्पित

वर्कशॉप के रंगगुरु विजय आनंद दुबे ने कहा रंगमंच छिंदवाड़ा कि वह अंतरात्मा है जो जनसंवाद, लोकसंस्कृति, साहित्य एवं संस्कृति को जीवित रखे हुए है। बदलते समय के साथ सोशल मीडिया के माध्यम रंगकर्म को प्रचारित एवं प्रसारित कर जनसमूह के बीच कलात्मक भावनाओ का संचार करना एक कलाकार का नैतिक दायित्व है। कार्यशाला के निर्देशक डॉ पवन नेमा एवं संयोजक शिरिन आनंद दुबे ने अतिथि विद्वान का आभार प्रदर्शन किया। कार्यशाला में तकनीकी सहयोगी के रूप में मुंबई से विक्रम टीडीआर ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की ।

कुण्डू दा की रंग-यात्रा के पड़ाव

वरिष्ठ रंगकर्मी एवं संगीतकार अरविंद रंजन कुंडू का जन्म 1956 में बंगाली परिवार में हुआ बचपन से ही संगीत एवं नाटक के प्रति उनका गहरा रुझान रहा 36 वर्ष बैंकिंग सेवा में कार्य करते उन्होंने बंगाली समाज के प्रतिभावान लोगों को साथ में लेकर अनेक बंगाली नाटक बंगाली एसोसिएशन के वार्षिक उत्सव में भव्य रूप से प्रस्तुत किए इनके द्वारा अभिनीत एवं निर्देशित बांग्ला नाटकों में शरद चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित मंझली बहू, देवदास, परिणीता एवं रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा रचित काबुलीवाला आदि नाटक शामिल रहे।
Close Menu