नाट्यगंगा ऑनलाइन एक्टिंग की पाठशाला- चौथा दिनरंगमंच एक सामाजिक प्रक्रिया-आलोक चटर्जी

एमपी नाउ डेस्क

छिंदवाड़ा । रंगमंच एक समाजिक प्रक्रिया है। जो समाज का आइना होती है। रंगमंच समाज की जरूरत है। वर्ममान समय में रंगमंच युवाओं को सकारात्मक कार्य से जोड़ता है। नहीं तो वे किसी गलत गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं। छिन्दवाड़ा जिले की अग्रणी नाट्य संस्था नाट्यगंगा के आयोजन ‘ऑनलाइन एक्टिंग की पाठशाला’ के चौथे दिन मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय के निदेशक श्री आलोक चटर्जी ने रंगमंच और समाज के अन्तर्सम्बन्धों पर यह बात कही। आलोक चटर्जी किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है। आपने अपने अभिनय की शुरुआत जबलपुर की नाट्य संस्था विवेचना से की। बाद में आप भोपाल भारत भवन के रंगमंडल से भी जुड़े रहे। आपने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय की शिक्षा ली। जहां आपके सहपाठी मरहूम अभिनेता इरफ़ान खान थे। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में आपको एक्टिंग के लिये गोल्ड मेडल मिला। जो कि चंद कलाकारों को ही मिला है। एक्टिंग की फील्ड में कदम रखने वाले कलाकारों के लिये आलोक चटर्जी माइलस्टोन की तरह हैं। आपके द्वारा पढ़ाये कई स्टूडेंट्स आज बेहतरीन एक्टर बन गए हैं। वर्तमान में आलोक चटर्जी भले ही मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय के निदेशक हैं लेकिन वे खुद एक्टिंग के इंस्टिट्यूट हैं। उनको अभिनय करते देखना एक अद्भुत अनुभूति है। वर्तमान में उनका नाटक नटसम्राट पूरे देश में धूम मचा रहा है। कुल मिलाकर आज का यह सेशन अद्भुत रहा। उनको देखना, सुनना नवोदित रंगकर्मियों के लिये एक न भुलाने वाला अनुभव रहा। यह दिन उनकी यादों में किताब के मुड़े कोने की तरह तब तक सुरक्षित है जब तक इसके आगे का नया अध्याय नहीं शुरू हो जाता। आज 44 कलाकारों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। कार्यशाला के निर्देशक श्री पंकज सोनी, तकनीकि सहायक नीरज सैनी, मीडिया प्रभारी संजय औरंगाबादकर और कोऑर्डिनेटर श्री वसंत काशीकर जी हैं। आज की क्लास मुख्य बातें -एक अच्छा अभिनेता या अभिनेत्री होने के लिए क्या करना चाहिए। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय एवं मप्र नाट्य विद्यालय में प्रवेश हेतु किस तरह से तैयारी की जाती है। किसी कस्बे के कलाकार जिसके पास संसाधन उप्लब्ध नहीं है वह भी कैसे स्वयं को अपडेट रख सकता है। एक कलाकार को कौन कौन सी किताबें अवश्य पढ़ना चाहिए।रंगमंच दो पक्षों के बीच चलने वाली प्रक्रिया है। एक कलाकार और दूसरा दर्शक । दर्शको का भी कर्तव्य है कि वे भी टिकिट खरीद कर ही नाटक देखें।
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