मीडिया का प्रशासन को आड़े हाथ लेना अधिकारियों को नही आ रहा पसंद


एमपी नाउ डेस्क

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ जनता की आवाज सरकार एव प्रशासन तक पहुचाने वाले मीडियाकर्मी
कोरोना महामारी के बीच आम लोगो तक सही जानकारी पहुँचे इसके लिए दिन रात कार्यरत है
वही मीडिया की आवाज दबाने की कोशिश भी की जा रही है देश  मे कई ऐसे क्षेत्र है जहाँ आपदा प्रबंधन के नाम पर हिसाब चुकता करने की जुगत में अधिकारी लग चुके है देश मे कई जगहों से ऐसे मामले आए है जहाँ पत्रकारों के ऊपर आपदा प्रबंधन उल्लंधन के मामले दर्ज किए जा रहे है!

हिमाचल प्रदेश राजस्थान महाराष्ट और भी प्रदेशो में लगातार पत्रकारों के ऊपर मामले दर्ज किए जा रहे है भरतपुर के बयाना से पत्रकार राजीव शर्मा को प्रशासन को आईना दिखाना महंगा पड़ गया वर्तमान समय को लेकर की गई उनकी रिपोर्ट के बारे में स्थानीय कलेक्टर ने इसे आपदा प्रबंधन के विरुद्ध मान कर कई धाराओं के अंतर्गत मामला दर्ज करवा दिये।
ऐसा ही एक मामला हिमाचल प्रदेश के डलहौजी में नजर आया जहाँ नेशलन चेनेल के पत्रकार विशाल आनंद के ऊपर आपदा प्रबंधन से सबंधित गलत समाचार प्रसारित करने का मामला दर्ज हुआ।

क्या ये मामले दर्ज करना सिर्फ आपदा प्रबंधन उल्लंघन से इतेफाक रखते है या सिर्फ नोकरशाह अपनी किसी पुराने अंडे फूटने वाली घटना का बदला इस आपदा के दौर में पत्रकारों से
निकाल रहे ।

देश की नौकरशाही जो कुर्सी पर बैठने के बाद अपने आप को भगवान से कम नहीं समझते ऐसे अफसर कानून का बेजा इस्तेमाल कर फर्जी तरीके से देश के श्रमिक पत्रकारों को मुकदमों में बांधकर भले खुश हो लें मगर देश का पत्रकार वर्ग हमेशा अपने दायित्व का निर्वहन करेगा प्रशासन शाशन को आईना दिखाना ही पत्रकारिता का धर्म है उसे वहां निभा रहा

पत्रकार के दिल की बात कवि शिवमंगल सुमन की कविता के चंद शब्द में


""क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही""

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